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प्रतिदान / नेमिचन्द्र जैन

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जब इधर होने लगे शत-खण्ड-से मन के

तब तुम्हारा आ रहा आह्वान छन-छन के

मौन ये पत्थर अचल प्रतिध्वनि नहीं उठती

भावनाएँ रह गयी हैं बन्दिनी बन के


बेसुरे इस कण्ठ से प्रिय गान क्या होगा

अब तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान क्या होगा !


(बरुआसागर-आगरा मार्ग पर 1946 में रचित )