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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 2
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 32, 33 )
(32)
तीखे तुरंग कुरंग सुरंगनि साजि चढ़े छँटि छैल छबीले।
भारी गुमान जिन्हें मनमें, कबहूँ न भए रनमें तन ढीले। ।
तुलसी लखि कै गज केेहरि ज्यों झपटे, पटके सब सूर सलीलें।
भूमि परे भट भूमि कराहत, हाँकि हने हनुमान हठीले।32।
(33)
सूर सँजोइल साजि सुबाजि, सुसल धरैं बगमेल चले हैं।
भारी भुजा भरी, भारी सरीर, बली बिजयी सब भाँति भले हैं ।।
‘तुलसी’ जिन्ह धाएँ धुकै धरनी, धरनीधर धौर धकान हले हैं।
ते रन-तीक्खल लक्खन लाखन दानि ज्यों दारिद दाबि दले हैं।33।