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जानकी -मंगल/ तुलसीदास / पृष्ठ 2

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।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 2)

स्वयंवर की तैयारी

( पद 3 से 8 तक)

सुभ दिन रच्यौ स्वयंबर मंगलदायक।
सुनत श्रवन हिय बसहिं सीय रधुनायक।3।

 देस सुहावन पावन बेद बखानिय।
भूमि तिलक सम तिरहुति त्रिभुवन जानिय।4

तहँ बस नगर जनकपुर परम उजागर।
सीय लच्छि जहँ प्रगटी सब सुख सागर।5।

जनक नाम तेहिं नगर बसै नरनायक।
सब गुन अवधि न दूसर पटतर लायक।6।

भयेहु न होइहि है न जनक सम नरवइ।
सीय सुता भइ जासु सकल मंगलइ।7।

 नृप लखि कुँअरि सयानि बोलि गुर परिजन।
करि मत रच्यौ स्वयंबर सिव धनु धरि पन।8।

(छंद 1)

पनु धरेउ सिव धनु रचि स्वयंबर अति रूचिर रचना बनी।
जनु प्रगटि चतुरानन देखाई चतुरता सब आपनी।।
 
पुनि देस देस सँदेस पठयउ भूप सुनि सुख पावहीं ।
 सब साजि साजि समाज राजा जनक नगरहिं आवहीं।1।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 2)