जानकी -मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 1
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जानकी -मंगल पृष्ठ 1
।। श्रीहरि।।
श्रीजानकी-मंगल
( प्रातः स्मरणीय गोस्वामी तुलसीदास जी ने जगज्जननी आद्याशक्ति भगवती श्री जानकी जी तथा परात्पर पुर्ण पुरूषोत्तम भगवान् श्रीराम के परम मंगलमय विवाहोत्सव का बड़े ही मधुर शब्दों में वर्णन किया है। जनक पुर मे स्वयंवर की तैयारी से आरंभ करके विश्वामित्र के अयोध्या जाकर श्रीराम -लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा के व्याजसे अपने साथ ले जाने , यज्ञ-रक्षाके अनन्तर धनुष-यज्ञ दिखाने के बहाने उन्हें जनकपुर ले जाने , रंग-भूमि में पधारकर श्रीराम के धनुष तोडने तथा श्री जनकराजतनययाके उन्हें वरमाला पहनाने , लग्न -पत्रिका तथा तिलककी सामग्री लेकर जनकपुरोधा महर्षि शतानन्दजी के अयोध्या जाने, महाराज दशरथ के बारात लेकर जनकपुर जाने, विवाह-संस्कार सम्पन्न होने के अनन्तर बारात के बिदा होने के कल्याणमय पाणिग्रहण का काव्यमय चित्रण किया है। इसके अतिरिक्त मार्ग में भृगुनन्दन परशुरामजी से भेंट होने तथा अन्त में अयोध्या पहुँचने पर वहाँ आनन्द मनाये जाने आदि प्रसंगों का संक्षेपमे बड़ा ही सरस एवं सजीव वर्णन किया गया है। जो प्रायः रामचरितमानस से मिलता जुलता ही है। कहीं -कहीं तो रामचरित मानस के शब्द ज्यों के त्यों दुहराये गये हैं। श्री सीतारामजी के इस परम पावन चरित्र का मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे से काव्य का उपसंहार किया है।)
।। श्रीहरि।।
मंगलाचरण
(1)
गुरू गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति।
सादर सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति ।1।
(2)
हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं।
सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं।2।
(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 1)