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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 9

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सिरिस-सुमन-सुकुमारि, सुखमाकी सींव,
सीय राम बड़े ही सकोच सङ्ग लई है |
भाईके प्रान समान, प्रियाके प्रानके प्रान,
जानि बानि प्रीति रीति कृपसील मई है ||

आलबाल-अवध सुकामतरु कामबेलि,
दूरि करि केकी बिपत्ति-बेलि बई है |
आप, पति, पूत, गुरुजन, प्रिय परिजन,
प्रजाहूको कुटिल दुसह दसा दई है ||

पङ्कज-से पगनि पानह्यौं न, परुष पन्थ,
कैसे निबहे हैं, निबहैङ्गे, गति नई है |
येही सोच-सङ्कट-मगन मग-नर-नारि,
सबकी सुमति राम-राग, रँग रई है ||

एक कहैं, बाम बिधि दाहिनो हमको भयो,
उत कीन्हीं पीठि, इतको सुडीठि भई है|
तुलसी सहित बनबासी मुनि हमरिऔ,
अनायास अधिक अघाइ बनि गई है ||