भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(61)

ताते हौं देत न दूषन तोहू |
रामबिरोधी उर कठोरतें प्रगट कियो है बिधि मोहू ||

सुन्दर सुखद सुसील सुधानिधि, जरनि जाइ जिहि जोए |
बिष-बारुनी-बन्धु कहियत बिधु! नातो मिटत न धोए ||

होते जौ न सुजान-सिरोमनि राम सवके मन माहीं |
तौ तोरी करतूति, मातु! सुनि प्रीति-प्रतीति कहा हीं ?||

मृदु मञ्जुल सीञ्ची-सनेह सुचि सुनत भरत-बर-बानी |
तुलसी साधु-साधु ,सुर-नर-मुनि कहत प्रेम पहिचानी ||