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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 1
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ताते हौं देत न दूषन तोहू |
रामबिरोधी उर कठोरतें प्रगट कियो है बिधि मोहू ||
सुन्दर सुखद सुसील सुधानिधि, जरनि जाइ जिहि जोए |
बिष-बारुनी-बन्धु कहियत बिधु! नातो मिटत न धोए ||
होते जौ न सुजान-सिरोमनि राम सवके मन माहीं |
तौ तोरी करतूति, मातु! सुनि प्रीति-प्रतीति कहा हीं ?||
मृदु मञ्जुल सीञ्ची-सनेह सुचि सुनत भरत-बर-बानी |
तुलसी साधु-साधु ,सुर-नर-मुनि कहत प्रेम पहिचानी ||