भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 6
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(66)
सुकसों गहवर हिये कहै सारो |
बीर कीर! सिय-राम-लषन बिनु लागत जग अँधियारो ||
पापिनि चेरि, अयानि रानि, नृप हित-अनहित न बिचारो |
कुलगुर-सचिव-साधु सोचतु, बिधि को न बसाइ उजारो ?||
अवलोके न चलत भरि लोचन, नगर कोलाहल भारो |
सुने न बचन करुनाकरके, जब पुर-परिवार सँभारो ||
भैया भरत भावतेके, सँग बन सब लोग सिधारो |
हम पँख पाइ पीञ्जरनि तरसत अधिक अभाग हमारो ||
सुनि खग कहत अंब! मौङ्गी रहि समुझि प्रेमपथ न्यारो |
गए ते प्रभुहि पहुँचाइ फिरे पुनि करत करम-गुन गारो ||
जीवन जग जानकी-लषनको, मरन महीप सँवारो |
तुलसी और प्रीतिकी चरचा करत, कहा कछु चारो ||