भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अरण्यकाण्ड पद 1 से 5/पृष्ठ 2

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(2).
रागकल्याण
सुभग सरासन सायक जोरे |
खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे ||

पीत बसन कटि, चारु चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे |
स्यामल तनु स्रम-कन राजत, ज्यों नव घन सुधा-सरोवर खोरे ||

ललित कन्ध, बर भुज, बिसाल उर, लेहिं कण्ठ-रेखैं चित चोरे |
अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससिकी छबि छोरे ||

जटा मुकुट सिर, सारस-नयननि गौहैं तकत सुभौंह सकोरे |
सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे ||

चितवत चकित कुरङ्ग-कुरङ्गिनि, सब भए मगन मदनके भोरे |
तुलसिदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे ||