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अरण्यकांड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 5

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(15)
मेरे जान तात कछू दिन जीजै |
देखिअ आपु सुवन-सेवासुख, मोहि पितुको सुख दीजै ||

दिब्य-देह, इच्छा-जीवन जग बिधि मनाइ मँगि लीजै |
हरि-हर-सुजस सुनाइ, दरस दै, लोग कृतारथ कीजै ||

देखि बदन, सुनि बचन-अमिय, तन रामनयन-जल भीजै |
बोल्यो बिहग बिहँसि रघुबर बलि, कहौं सुभाय, पतीजै ||

मेरे मरिबे सम न चारि फल, होंहि तौ, क्यों न कहीजै
तुलसी प्रभु दियो उतरु मौन हीं, परी मानो प्रेम सहीजै ||