भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अरण्यकांड पद 21 से 25 तक/पृष्ठ 5
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 8 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(17)
पुरई मनोरथ, स्वारथहु परमारथहु पूरन करी |
अघ-अवगुनन्हिकी कोठरी करि कृपा मुद मङ्गल भरी ||
तापस-किरातिनि-कोल मृदु मूरति मनोहर मन धरी |
सिर नाइ, आयसु पाइ गवने, परमनिधि पाले परी ||
सिय-सुधि सब कही नख-सिख निरखि-निरखि दोउ भाइ |
दै दै प्रदच्छिना करति प्रनाम, न प्रेम अघाइ ||
अति प्रीति मानस राखि रामहि, राम-धामहि सो गई |
तेहि मातु-ज्यों रघुनाथ अपने हाथ जल-अंजलि दई ||
तुलसी-भनित, सबरी-प्रनति, रघुबर-प्रकृति करुनामई |
गावत, सुनत, समुझत भगति हिय होय प्रभु पद नित नई ||