(7)
तात! तोहूसों कहत होति हिये गलानि |
मनको प्रथम पन समुझि अछत तनु,
लखि नै गति भै मति मलानि ||
पियको बचन परहर्यो जियके भरोसे ,
सङ्ग चली बन बड़ो लाभ जानि |
पीतम-बिरह तौ सनेह सरबसु, सुत
औसरको चूकिबो सरिस न हानि ||
आरज-सुवनके तो दया दुवनहुपर,
मोहि सोच, मोतें सब बिधि नसानि |
आपनी भलाई भलो कियो नाथ सबहीको,
मेरे ही दिन सब बिसरी बानि ||
नेम तौ पपीहाहीके, प्रेम प्यारो मीनहीके,
तुलसी कही है नीके हृदय आनि |
इतनी कही सो कही सीय, ज्योंही त्योंही
रही, प्रीति परी सही, बिधिसों न बसानि ||