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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 7

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(7)

तात! तोहूसों कहत होति हिये गलानि |
मनको प्रथम पन समुझि अछत तनु,
लखि नै गति भै मति मलानि ||

पियको बचन परहर्यो जियके भरोसे ,
सङ्ग चली बन बड़ो लाभ जानि |
पीतम-बिरह तौ सनेह सरबसु, सुत
औसरको चूकिबो सरिस न हानि ||

आरज-सुवनके तो दया दुवनहुपर,
मोहि सोच, मोतें सब बिधि नसानि |
आपनी भलाई भलो कियो नाथ सबहीको,
मेरे ही दिन सब बिसरी बानि ||

नेम तौ पपीहाहीके, प्रेम प्यारो मीनहीके,
तुलसी कही है नीके हृदय आनि |
इतनी कही सो कही सीय, ज्योंही त्योंही
रही, प्रीति परी सही, बिधिसों न बसानि ||