(21)
कपिके सुनि कल कोमल बैन |
प्रेमपुलकि सब गात सिथिल भए, भरे सलिल सरसीरुह-नैन ||
सिय-बियोग-सागर नागर-मनु बूड़न लग्यो सहित चित-चैन |
लही नाव पवनज-प्रसन्नता, बरबस तहाँ गह्यो गुन-मैन ||
सकत न बूझि कुसल, बूझे बिन गिरा बिपुल ब्याकुल उर-ऐन |
ज्यों कुलीन सुचि सुमति बियोगिनि सनमुख सहै बिरह-सर पैन ||
धरि-धरि धीर बीर कोसलपति किए जतन, सके उत्तरु दै न |
तुलसिदास प्रभु सखा अनुजसों सैनहिं कह्यौ चलहु सजन सैन ||