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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 3

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सुजस सुनि श्रवन हौं नाथ! आयो सरन |
उपल-केवट-गीध-सबरी-संसृति-समन,
सोक-श्रम-सीव सुग्रीव आरतिहरन ||

राम राजीव-लोचन बिमोचन बिपति,
स्याम नव-तामरस-दाम बारिद-बरन |
लसत जटाजूट सिर, चारु मुनिचीर कटि,
धीर रघुबीर तूनीर-सर-धनु-धरन ||

जातुधानेस-भ्राता बिभीषन नाम
बन्धु-अपमान गुरु ग्लानि चाहत गरन |
पतितपावन! प्रनतपाल! करुनासिन्धु!
राखिए मोहि सौमित्रि-सेवित-चरन ||

दीनता-प्रीति-सङ्कलित मृदुबचन सुनि
पुलकि तन प्रेम, जल नयन लागे भरन |
बोलि, "लङ्केस कहि अंक भरि भेण्टि प्रभु,
तिलक दियो दीन-दुख-दोष दारिद-दरन ||

रातिचर-जाति, आराति सब भाँति गत
कियो सो कल्यान-भाजन सुमङ्गलकरन |
दास तुलसी सदयहृदय रघुबंसमनि
"पाहि कहे काहि कीन्हों न तारन-तरन ?||