भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
(42)
गये राम सरन सबकौ भलो |
गनी-गरीब, बड़ो-छोटो, बुध-मूढ़, हीनबल-अतिबलो ||
पङ्गु-अंध, निरगुनी-निसम्बल, जो न लहै जाचे जलो |
सो निबह्यो नीके, जो जनमि जग राम-राजमारग चलो ||
नाम-प्रताप-दिवाकर कर खर गरत तुहिन ज्यों कलिमलो |
सुतहित नाम लेत भवनिधि तरि गयो अजामिल-सो खलो ||
प्रभुपद प्रेम प्रनाम-कामतरु सद्य बिभीषनको फलो |
तुलसी सुमिरत नाम सबनिको मङ्गलमय नभ-जल थलो ||