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अति भाग बिभीषनके भले |
एक प्रनाम प्रसन्न राम भए, दुरित-दोष-दारिद दले ||
रावन-कुम्भकरन बर माँगत सिव-बिरञ्चि बाचा छले |
राम-दरस पायो अबिचल पद, सुदिन सगुन नीके चले ||
मिलनि बिलोकि स्वामि-सेवककी उकठे तरु फूले-फले |
तुलसी सुनि सनमान बन्धुको दसकन्धर हँसि हिये जले ||