भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 9 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(11)

 भरत-सत्रुसूदन बिलोकि कपि चकित भयो है |
  राम-लषन रन जीति अवध आए, कैधौं मोहि भ्रम,
  कैधौं काहू कपट ठयो है ||

  प्रेम पुलकि, पहिचानिकै पदपदुम नयो है |
  कह्यो न परत जेहि भाँति दुहू भाइन
  सनेहसों सो उर लाय लयो है ||

  समाचार कहि गहरु भो, तेंहि ताप तयो है |
  कुधर सहित चढ़ौ बिसिष, बेगि पठवौं, सुनि
  हरि हिय गरब गूढ़ उपयो है ||

  तीरतें उतरि जस कह्यो चहै, गुनगननि जयो है |
  धनि भरत! धनि भरत! करत भयो,
  मगन मौन रह्यो मन अनुराग रयो है ||

  यह जलनिधि खन्यो, मथ्यो, लँघ्यो, बाँध्यो, अँचयो है |
  तुलसिदास रघुबीर बन्धु-महिमाको सिन्धु
  तरि को कबि पार गयो है ?||