(12)
होतो नहि जौ जग जनम भरतको |
तौ, कपि कहत, कृपान-धार मग चलि आचरत बरत को ?||
धीरज-धरम धरनिधर-धुरहूँतें गुर धुर धरनि धरत को ?|
सब सदगुन सनमानि आनि उर, अघ-औगुन निदरत को ?||
सिवहु न सुगम सनेह रामपद सुजननि सुलभ करत को ?|
सृजि निज जस-सुरतरु तुलसी कहँ, अभिमत फरनि फरत को ?||