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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 1

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(11)

 भरत-सत्रुसूदन बिलोकि कपि चकित भयो है |
  राम-लषन रन जीति अवध आए, कैधौं मोहि भ्रम,
  कैधौं काहू कपट ठयो है ||

  प्रेम पुलकि, पहिचानिकै पदपदुम नयो है |
  कह्यो न परत जेहि भाँति दुहू भाइन
  सनेहसों सो उर लाय लयो है ||

  समाचार कहि गहरु भो, तेंहि ताप तयो है |
  कुधर सहित चढ़ौ बिसिष, बेगि पठवौं, सुनि
  हरि हिय गरब गूढ़ उपयो है ||

  तीरतें उतरि जस कह्यो चहै, गुनगननि जयो है |
  धनि भरत! धनि भरत! करत भयो,
  मगन मौन रह्यो मन अनुराग रयो है ||

  यह जलनिधि खन्यो, मथ्यो, लँघ्यो, बाँध्यो, अँचयो है |
  तुलसिदास रघुबीर बन्धु-महिमाको सिन्धु
  तरि को कबि पार गयो है ?||