भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 9 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(12)
होतो नहि जौ जग जनम भरतको |
तौ, कपि कहत, कृपान-धार मग चलि आचरत बरत को ?||
धीरज-धरम धरनिधर-धुरहूँतें गुर धुर धरनि धरत को ?|
सब सदगुन सनमानि आनि उर, अघ-औगुन निदरत को ?||
सिवहु न सुगम सनेह रामपद सुजननि सुलभ करत को ?|
सृजि निज जस-सुरतरु तुलसी कहँ, अभिमत फरनि फरत को ?||