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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 2

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(12)

 होतो नहि जौ जग जनम भरतको |
  तौ, कपि कहत, कृपान-धार मग चलि आचरत बरत को ?||

  धीरज-धरम धरनिधर-धुरहूँतें गुर धुर धरनि धरत को ?|
  सब सदगुन सनमानि आनि उर, अघ-औगुन निदरत को ?||

  सिवहु न सुगम सनेह रामपद सुजननि सुलभ करत को ?|
  सृजि निज जस-सुरतरु तुलसी कहँ, अभिमत फरनि फरत को ?||