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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 3

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 सुनि रन घायल लषन परे हैं |
  स्वामिकाज सङ्ग्राम सुभटसों लोहे ललकारि लरे हैं ||

  सुवन-सोक, सन्तोष सुमित्रहि, रघुपति-भगति बरे हैं |
  छिन-छिन गात सुखात, छिनहिं छिन हुलसत होत हरे हैं ||

  कपिसों कहति सुभाय, अंबके अंबक अंबु भरे हैं |
  रघुनन्दन बिनु बन्धु कुअवसर, जद्यपि धनु दुसरे हैं ||

  "तात! जाहु कपि सँग, रिपुसूदन उठि कर जोरि खरे हैं |
  प्रमुदित पुलकि पैन्त पूरे जनु बिधिबस सुढर ढरे हैं ||

  अंब-अनुजगति लखि पवनज-भरतादि गलानि गरे हैं |
  तुलसी सब समुझाइ मातु तेहि समय सेचत करे हैं ||