भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहता हूँ मुहब्बत है ख़ुदा / हनीफ़ साग़र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 30 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनीफ़ साग़र }} Category:गज़ल कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहता हूँ महब्बत है ख़ुदा सोच समझकर
ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर

कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर
कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर

वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए
उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर

कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन जाए
मांगा करो जीने की दुआ सोच समझकर

आवारा बना देंगे ये आवारा ख़यालात
इन ख़ाना बदोशों को बसा सोच समझकर

ये आग जमाने में तेरे घर से न फैले
दीवाने को महफ़िल से उठा सोच समझकर

भर दी जमाने ने बहुत तलख़ियां इसमें
'साग़र' की तरफ़ हाथ बढा सोच समझकर