भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखि सरद बिमल/ तुलसीदास

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:02, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

21

सखि सरद-बिमल बिधुबदनि बधूटी |

ऐसी ललना सलोनी न भई, न है, न होनी,

रत्यो रची बिधि जो छोलत छबि छूटी ||

साँवरे गोरे पथिक बीच सोहति अधिक,
 
तिहुँ त्रिभुवन-सोभा मनहु लूटी |

तुलसी निरखि सिय प्रेमबस कहैं तिय,

लोचन-सिसुन्ह देहु अमिय घूटी ||