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मिलने की हर खुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ / गुलाब खंडेलवाल

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मिलने की हर खुशी में बिछुड़ने का गम हुआ
एहसान उनका खूब हुआ फिर भी कम हुआ

कुछ तो नज़र का उनकी भी इसमें कसूर था
देखा जिसे भी प्यार का उसको वहम हुआ

नज़रें मिलीं तो मिल के झुकीं, झुक के मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ

ज्यों ही लगी थी फैलाने घर में दिए की जोत
त्योंही हवा का रुख भी बहत बेरहम हुआ

कुछ तो चढ़ा था पहले से हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ

आती नहीं है प्यार की खुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना भी कम हुआ