भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्हें बाँहों में बढ़कर थाम लेंगे / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:48, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)
उन्हें बाँहों में बढ़कर थाम लेंगे
कभी दीवानेपन से काम लेंगे
ग़ज़ल में दिल तड़पता है किसी का
उन्हें कह दो, कलेजा थाम लेंगे
ये माना ज़िन्दगी फिर भी मिलेगी
नहीँ हम ज़िन्दगी का नाम लेंगे
अँधेरे ही अँधेरे होंगे आगे
पड़ाव अगला जहां कल शाम लेंगे
मिला दुनिया से क्या, मत पूछ हमसे
तुझीमें, मौत! अब आराम लेंगे
गुलाब! इस बाग़ की रंगत थी तुमसे
वे किस मुँह से मगर यह नाम लेंगे!