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निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो / गुलाब खंडेलवाल

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निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो
अँधेरी रात है, कोई दिया जलाते चलो

दिलों में प्यार की पीड़ा नई जगाते चलो
कुछ और रूप की दुनिया को जगमगाते चलो

किरन-किरन में मधुर बाँसुरी बजाते चलो
कली-कली के कलेजे को गुदगुदाते चलो

हमारे दिल की ही कमजोरियों पे मत जाओ
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो

कुछ इस बहाने ही आयी तो रौशनी घर में
गले लगाके बिजलियों को मुस्कुराते चलो

कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस की दिए से दिया जलाते चलो

कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले
कुछ और तेज सुरों में क़दम बढाते चलो

कभी तो उनको लुभा लेंगी तड़पनें इसकी
ये दिल का साज जहाँ तक बजे बजाते चलो

कटेगा इससे भी कुछ तो हवा का सन्नाटा
अकेलेपन में कोई गीत गुनगुनाते चलो

गुलाब! बाग़ में तुमसे ही है बहार आई
सुगंध प्यार की निकालो जिधर, लुटाते चलो