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कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात / गुलाब खंडेलवाल


कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
हमारे प्यार की ख़ुशबू से भर गयी है रात

कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात

ये शोख़ियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक़्त!
कुछ और आप पे जादू-सा कर गयी है रात

हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात

मिला न कोई महक दिल की तौलनेवाला
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात