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ज़मीन / सुरेश यादव

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तुम्हारी कविता में
बहुत बार
हथेलियों के बीच…
मरी तितलियों का रंग उतरता है
बहुत बार
घायल मोर का पंख
तुम्हारी कविता में रंग भरता है
ऊंचे आकाश में
चिड़िया मासूम कोई जब
बाज़ के पंजों में समाती है
शब्दों की बहादुरी
तुम्हारी कविता में भर जाती है
मेरी संवेदना
जाने क्यों
इन पन्नों पर जाती हुई
शर्माती है।