Last modified on 22 जुलाई 2011, at 04:42

फिर घनश्याम गगन में छाये / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:42, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये

रह न सकी अपने में ऐंठी
राधा द्वार निकट जा बैठी
मुरली ध्वनि कानों में पैठी
                       अंग अंग लहराये

पीताम्बर की आभा पाई
चारों और दृष्टि दौड़ायी
पावों की आहट तो आयी
                   श्याम नहीं दिख पाये

फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये