भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसकी शोखी ने सितम ढाए बहुत / मनु भारद्वाज

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:25, 3 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}} <Poem> उसकी शोखी ने सि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसकी शोखी ने सितम ढाए बहुत
हम तो बस कहते रहे 'हाये' बहुत

वो हमें भूले तो भूले ही रहे
याद हम आये तो याद आये बहुत

आँखों-आँखों में न जाने क्या हुआ
देखकर वो हमको शर्माये बहुत

ख़ुद उलझकर रह गए जान-ए-ग़ज़ल
तेरे गेसू हमने सुलझाये बहुत

जानता था मैं न होगा दर्द कम
ज़ख्म अपने फिर भी सहलाये बहुत

वो न आये अंजुमन में ऐ 'मनु'
हमने पैगामात पहुंचाए बहुत