भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कबीर दोहावली / पृष्ठ १०

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(आपको सन्त कबीर के नये दोहे मिलें तो उन्हें यहाँ जोड़ने का कष्ट करें।)



हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार ।
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥

या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत ।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥ 902 ॥

कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥