Last modified on 11 नवम्बर 2007, at 23:03

संवेदनाएं चुक गईं / रमा द्विवेदी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 11 नवम्बर 2007 का अवतरण

संवेदनाएं चुक गईं,
अब और सह सकते नहीं ।
बन गया पत्थर दिल हमारा,
रहमोकरम तुम पे कर सकते नहीं ॥


कोशिशें तुमने बहुत कीं,
हमको मिटाने के लिए ।
जुल्म तुमने क्या- क्या किये?
हमें पत्थर बनाने के लिए ॥


हमारा दिल वो पत्थर है,
जो हर तूफ़ां को झेल जाता है ।
अंकित हो जाती हर तस्वीर उस पर
फ़िर नहीं मिट पाता है ॥


शायद तुम्हें मालूम न हो,
पत्थर का निशान होता है अमिट।
सदियों बाद पढ. सकते हैं उसे,
उसका इतिहास होता है अमिट ॥


तुमने जो विष बीज बोया है,
कई पीढियां मूल्य चुकाएंगी।
अब भी नहीं संभलोगे गर,
कायर तुम्हें बतलाएंगी ॥


तुमने रचा इतिहास जो,
कैसे बदल अब पाओगे ?
सदियों के इस पाप को,
किस पुण्य से धो पाओगे?


तुम करोगे जुल्म हम सहते रहेंगे-
वक्त वो जाता रहा ।
अब हम कहेंगे तुम सुनोगे,
वक्त ऎसा आ गया ॥


चाहे जितना आजमां लो,
देखेंगे कितना जोर तुम में है?
मोड. देंगे रुख हवा का,
हौसला इतना अभी भी हम में है ॥