यह मन इस लोक में कहाँ थमता था !
कल तक कवि आसमान में रमता था ।
ऎसा युग पलटा आज मैं पूछता हूँ--
क्या स्वर्ग ही लिए धूल की समता था ?
(रचनाकाल : 1945)
यह मन इस लोक में कहाँ थमता था !
कल तक कवि आसमान में रमता था ।
ऎसा युग पलटा आज मैं पूछता हूँ--
क्या स्वर्ग ही लिए धूल की समता था ?
(रचनाकाल : 1945)