भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी-सी मृत्यु के बाद / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:46, 11 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश |संग्रह=रास्ते के बीच }} मेरे लिए अकस्मात था ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे लिए अकस्मात था

हाथों का जुड़ना

और सिरों का झुकना भी ।


इतना ज़रूर था

कि यह सब तहेदिल से था

मैंने पहली बार ख़ुद को

महज़

इन्सानों के बीच पाया था ।