मेरे लिए अकस्मात था
हाथों का जुड़ना
और सिरों का झुकना भी ।
इतना ज़रूर था
कि यह सब तहेदिल से था
मैंने पहली बार ख़ुद को
महज़
इन्सानों के बीच पाया था ।
मेरे लिए अकस्मात था
हाथों का जुड़ना
और सिरों का झुकना भी ।
इतना ज़रूर था
कि यह सब तहेदिल से था
मैंने पहली बार ख़ुद को
महज़
इन्सानों के बीच पाया था ।