भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपना / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 11 नवम्बर 2011 का अवतरण
गाँव से चिट्ठी आई है
और सपने में गिरवी पड़े खेतों की
फिरौती लौटा रहा हूँ
पथराए कन्धे पर हल लादे पिता
खेतों की तरफ़ जा रहे हैं
और मेरे सपने में बैलों के गले की घंटियाँ
घुंघरू की तान की तरह बज रही हैं
समूची धरती सर से पाँव तक
हरियाली पहने मेरे तकिये के पास खड़ी है
गाँव से चिट्ठी आई है
और मैं हरनाथपुर जाने वाली
पहली गाड़ी के इन्तजार में
स्टेशन पर अकेला खड़ा हूँ ।