भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कथा / विमलेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 12 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह=हम बचे रहे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक समय की बात है
एक तोता और एक मैना थके हुए
बैठ गये
एक तालाब के किनारे पेड़ की डाल पर
शहर अपनी रफ्रतार में
सुबह के ठीक पहले का अँध्ेरा
और तालाब में कुछ तैरता सा दिखता था
कौन है? मैना की आँख में कौतूहल
तोता गम्भीर-
नाम इसका रामध्नी,
पिता टिकधरी पंडित
मकाम पंचपेफड़वा, इंटरपास
इसे तलाश थी एक ऐसी जगह की
जहाँ गाड़ सके गाँव से आई बैरन चिट्ठियाँ
और साथ उसके आए
किसान पिता की कराह माँ की आँखों का ध्ुँआ
पत्नी का एकान्त विलाप
और ग्राईप वाटर की खाली शीशियाँ
स्मृति में बचे रह गए पवित्रा मन्त्रों के साथ
और भटकता रहा रामध्नी
दिन रात हफ्रतों महीनों वर्षों दशकों
इस शहर की गलियों चौराहा नुक्कड़ पुफटपाथों पर
उम्मीद की एक आखिरी रोशनी तक
एक अदद पवित्रा जगह की खोज में
-तोते ने एक ही साँस में कहा और उड़ गया
मैना देर तक डाल पर बैठी रही उदास
देखती रही
पानी पर तैरती और पानी में मिलती जा रही
उस आदमी की लाश
(कथा गया वन में.... सोचो अपने मन में)