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एक तस्वीर देखकर / विमलेश त्रिपाठी

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झर रहे हैं पियराये पूफलों के गुच्छे
आहिस्ता-आहिस्ता
बादलों के उजास को चीरकर
अल्लढ़ खड़े हैं कुछ जंगली पौध्े
नशेबाज दरवानों की तरह
दुनिया के सबसे सुन्दर दिखने वाले
इस घर के चारों ओर
लॉन में गोलमेज पर पड़ी
उदास प्यालियों को
इन्तजार है कुछ काँपते होठों का
और अन्हुआई हुई खाली कुर्सियों को
मानुष गन्ध् की शान्त प्रतीक्षा है
और बेतरह परेशान कर रहा है मुझे
यह सवाल
कि एक सि( कविता की तरह मुकम्मल
इस अकेले घर में
कोई नहीं रहता
या कि कोई नहीं रहेगा... ???