कैलाश गौतम सहज भाव और भाषा के साथ साडी परम्परा को शब्दों में, चित्रों में, बिम्बों में परोस देते हैं, वह कितना उदात्त है, क्या नहीं है इन गीतों में? सारा भारतीय लोकजीवन कंधे पर गीली धोती उठाये चना -चबेना चबाते हुए अपनी विश्वास की धरती पर चलते दिखता है| हमारी भारतीय संस्कृति का मूल हमारा लोकजीवन ही है| कैलाश गौतम जैसे वास्तविक कवि अपनी संस्कृति से एक क्षण भी पृथक नहीं होते|
नरेश मेहता [कविता लौट पड़ी की भूमिका से]