भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदिया का घना-घना कूल है / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 20 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल/ ठाकुरप्रसाद सि...)
नदिया का घना-घना कूल है
वंशी से बेधो मत प्यारे
यह मन तो बिंधा हुआ फूल है
नदिया का घना-घना कूल है
थिर है नदिया का जल जामुनी
तिरती रे छाया मनभावनी
याद नहीं आती क्या चांदनी!
पिछला जीवन क्या फिजूल है ?
नदिया का घना-घना कूल है
मैं आई जल भर हूँ आनने
या नहीं की सुख के दिन मांगने
जो जाता बीते फल थामने
करता वह बहुत बड़ी भूल है
नदिया का घना-घना कूल है