भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाढ़ १९७५ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बादल बरस रहे बचकाने
आँख मूँद कर दिए जा रहे
पर्वत को सिरहाने
बादल बरस रहे बचकाने
यह लम्पट आवारा पानी
करता-फिरता है मनमानी
बीन-बीन कर गाँव गिराए
छोड़े राजघराने
सारे नियम किए मटमैले
बिल से निकले साँप विषैले
ऊपर मौन पखेरू, नीचे
ठंडे हैं अगिहाने<ref>देशज शब्द है, जिसका मतलब है चूल्हा या अग्निस्थान</ref>
बादल बरस रहे बचकाने
शब्दार्थ
<references/>