सुर / वर्तिका नन्दा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 15 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वर्तिका नन्दा }} {{KKCatKavita‎}} <poem> कोई सुर अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोई सुर अंदर ही बजता है कई बार
दीवार से टकराता है
बेसुरा नहीं होता फिर भी
 
कितनी ही बार छलकता है जमीन पर
पर फैलता नहीं
 
नदी में फेंक डालने की साजिश भी तो हुई इस सुर के साथ बार-बार
सुर बदला नहीं
 
सुर में सुख है
सुख में आशा
आशा में सांस का एक अंश
इतना अंश काफी है
मेरे लिए, मेरे अपनों के लिए, तुम्हारे लिए, पूरे के पूरे जमाने के लिए
पर इस सुर को
कभी सहलाया भी है ?
सुर में भी जान है
क्यों भूलते हो बार-बार

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.