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जैसे पूजा में आँख भरे / भारत भूषण
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जैसे पूजा में आँख भरे झर जाय अश्रु गंगाजल में
ऐसे ही मैं सिसका सिहरा
बिखरा तेरे वक्षस्थल में!
रामायण के पारायण सा होठों को तेरा नाम मिला
उड़ते बादल को घाटी के मंदिर में जा विश्राम मिला
ले गये तुम्हारे स्पर्श मुझे
अस्ताचल से उदयाचल में!
मैं राग हुआ तेरे मनका यह देह हुई वंशी तेरी
जूठी कर दे तो गीत बनूं वृंदावन हो दुनिया मेरी
फिर कोई मनमोहन दीखा
बादल से भीने आंचल में!
अब रोम रोम में तू ही तू जागे जागूं सोये सोऊं
जादू छूटा किस तांत्रिक का मोती उपजें आँसूं बोऊं
ढ़ाई आखर की ज्योति जगी
शब्दों के बीहड़ जंगल में!