भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कर्त्तार-कीर्तन / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 22 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} Category:पद <poem> प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरण पुरुष परम सुखदाता,
हम सब को करतार है।
मंगल-मूल अमंगल हारी, अगम अगोचर अज अविकारी,
शिव सच्चिदानन्द अविनाशी, एक अखण्ड अपार है।
बिन कर करे, चरण बिन डोले, बिन दृग देखे, मुख बिन बोले,
बिन श्रुति सुने, नाक बिन सूँघे, मन बिन करत विचार है।
उपजावे, धारे, संहारे, रच-रच बारम्बार बिगारे,
दिव्य दृश्य जाकी रचना को यह सारो संसार है।
प्राण प्राण को, जीवन जी को, स्वाभाविक स्वामी सब ही को,
इष्ट देव साँचे सन्तन को, ‘शंकर’ को भरतार है।