भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँध कर इरादे / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुट्ठी भर बाँध कर इरादे
बाँहों भर तोड़ कर क़सम
गीतों के रेशमी नियम जैसे—
वैसे ही टूट गए हम

यह जीवन
धूप का कथानक था
रातों का चुटकला न था
पर्वत का
मंगलाचरण था यह
पानी का बुलबुला न था

आँगन का आयतन बढ़ाने
बढ़ने दो-चार सौ क़दम
हमने दीवार की तरह तोड़ी
परदों की साँवली शरम
मुट्ठी भर बाँध कर इरादे