Last modified on 25 दिसम्बर 2011, at 01:47

वह आदमखोर है / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:47, 25 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=हरापन नहीं टूटेग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह आदमखोर है
और तुम शिकारी
बन्धु ! देख-भाल कर चलो
पैंतरे सँभाल कर चलो

चेहरा है चेहरा उसका नहीं
डिब्बा है रँग का
उसका हर ढंग है उदाहरण
अपने ही ढग का
अंगों को लोहे में ढाल कर चलो

क़ैदी हैं जाने कितने चरण
आँधी के, आग के
कितने ही पालतू दिमाग़ हैं
उस काले नाग के
जीना है तो उसी कपाल पर चलो