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डूबते सूरज ! / रमेश रंजक

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एक थैला, दो शिकन, हम तीन
डूबते सूरज तुझे आमीन...

पेड़-पर्वत, प्रश्न-उत्तर मौन
फिर हमें झकझोरता है कौन ?
कौन है ? जो भोंकता संगीन

ये शिकन, टूटन, थकन-संसार
छू नहीं पाता जिसे अख़बार
आज तक प्राचीन का प्राचीन