भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रिज्म-जीवन / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 26 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=हरापन नहीं टूटेग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बोल मेरे
पाँव के भूगोल
कौन तेरा पंथ,
तेरा रंग—
मेरे प्रिज़्म-जीवन बोल ?
रोज़ मेरी देह से
छन कर गुज़रते दिन
किस तरह ?
यह बात कह पाना
नहीं मुमकिन
एक भीगे हुए साबुन-सा
खिसक जाता है समय
दे मुट्ठियों का झोल
बोल मेरे पाँव के भूगोल
कौन तेरा पंथ
तेरा रंग—
मेरे प्रिज़्म-जीवन बोल ?