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नदी सूख गई / रमेश रंजक

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नदी सूख गई

बालुका के संग सीपी, शंख
पड़े हैं जैसे—
घरेलू चिड़ी के-से पंख

प्यास की क्या कहें-सुनें
भूख गई
नदी सूख गई

फाट नंगा, घाट अधनंगे
पेड़ वे बूढ़े हुए
जो थे भले-चंगे

एक क्षण को एक दिन ढो कर
आँख दूख गई
नदी सूख गई