भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हितकारी नाथ / नाथूराम शर्मा 'शंकर'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:16, 29 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} Category:पद <poem> ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हितकारी तुझसा नाथ,
न अपना और कहीं कोई।
शुद्ध किया पानी से तन को, सत्यामृत से मैले मन को,
बुद्धि मलीन ज्ञान-गंगा में बार-बार धोई।
ज्वलित ज्योति विद्या की जागी, रही न भूल अविद्या भागी,
कर्म-सुधार, मोह की माया खोज-खोज खोई।
मार तपोबल के अंगारे, पातक पुंज पजारे सारे,
उमगा योग आत्मा अपना भाव भूल भोई।
‘शंकर’ पाय सहारा तेरा, होगा सिद्ध मनारथ मेरा,
छीनदयालु इसी से मैंने प्रेम-बेलि बोई।