भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सद्गुरु-महिमा / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 29 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> श्री...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्रीगुरु गूढ़ ज्ञान के दानी।
देख सर्व-संघात ब्रह्म की अटल एकता जानी,
भेदों से भरपूर अविद्या भूल-भरी पहचानी।
 एक वस्तु में तीन गुणों की मायिक महिमा मानी,
ठोस-पोल की तारतम्यता, मूल प्रकृति ने ठानी।
देश, दिशा, आकाश, काल, भू, मारुत, पावक, पानी,
इनके साथ जीव की जागी, ज्योति मनोरस सानी।
छोटा-सा उपदेश दिया है, बढ़िया बात बखानी,
तो भी मूढ़ नहीं समझेंगे, ‘शंकर’ कूट कहानी।